भारत ने
राजस्थान के पोखरण में 11 मई और 13 मई 1998 को पांच परमाणु परीक्षण किए। इस परीक्षण ने पूरी दुनिया को हैरान करके रख
दिया। उस वक्त विदेश मंत्रालय में सेक्रेटरी (वेस्ट) थे ललित मान सिंह।
पहले के तीन परीक्षण 11 मई को 3 बजकर 45 मिनट पर किए गए। जबकि, 12 मई को बाकी दो परीक्षण
हुए। यह परीक्षण विदेश सचिव के. रघुनाथ की तरफ से अपने अमेरिकी समकक्षीय को यह
भरोसा देने के बावजूद किया गया कि भारत की परमाणु परीक्षण करने का ऐसा कोई इरादा
नहीं है। मानसिंह ने याद करते हुए कहा- “यह परीक्षण पूरी तरह
से गुप्त था। सिर्फ पांच लोग ही इस बारे में जानते थे। जाहिर तौर पर मैं या फिर
विदेश सचिव उन पांचों में शामिल नहीं थे।”
इस परीक्षण के बाद भारत के सामने कई मुसीबतें एक साथ आ गईं और
आर्थिक, सैन्य प्रतिबंध लगाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
अलग-थलग कर दिया गया। मानसिंह जो बाद में विदेश सचिव और फिर अमेरिका के राजदूत बने
उन्होंने कहा- “यह जाहिर तौर पर भारतीय विदेश नीति
निर्धारतों के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी जिसका काफी लंबे समय तक सामना करना पड़ा।”
उस वक्त की सबसे पहली चुनौती थी अंतरराष्ट्रीय बौखलाहट को कम करना
और अमेरिका के साथ विश्वास में आए अंतर को पाटना। परमाणु परीक्षण के फौरन बाद
अमेरिका ने विदेश सचिव स्तर की वार्ता को सस्पेंड कर दिया। दो वर्षों के दौरान
अमेरिका ने करीब 200 से ज्यादा कंपनियों को प्रतिबंधों की सूची में
डाला।
इस लिस्ट में
सिर्फ डिपार्टमेंट ऑफ एटोमिक एनर्जी (डीएई), डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन
(डीआरडीओ) और डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस की कंपनियों का नाम ही शामिल नहीं था बल्कि कई
उन प्राइवेट फर्म्स को भी इस सूची में डाला गया जो उनके साथ पहले से काम कर रहे
थे।
उस समय तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री स्ट्रोब टेलबोट और भारतीय
विदेश मंत्री जसवंत सिंह की बीच लंबी चर्चा हुई। उन्होने सात देश, 10 शहर और 14 राउंड की वार्ता की। अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए भारत एक न्यूक्लियर हब बन गया। पाकिस्तान
भी उसकी बराबरी करना चाहता था। जिसके बाद अमेरिका को इस बात का डर सता रहा था कि
दक्षिण एशिया परमाणु शक्ति का अखाड़ा बन जाएगा।