इलाहाबाद उच्च
न्यायालय ने कहा है कि मकान मालिक द्वारा अपने बेटे या अन्य पारिवारिक सदस्यों के
व्यवसाय के लिए किराये पर उठाये गये मकान को गिराकर निर्माण की अनुमति की मांग
सदाशयपूर्ण जरूरत मानी जायेगी। उसकी इस इच्छा की उपेक्षा नहीं की जा सकती। कोर्ट
ने कहा कि यदि स्थानीय निकाय ने मकान मालिक का नक्शा पास कर दिया हो तो किराया
नियंतण्रअधिकारी या अपीलीय अधिकारी का इस संबंध में विचार करने का क्षेत्राधिकार
नहीं है। कोर्ट ने किरायेदारों की याचिका खारिज करते हुए चार माह में भवन खाली
करने का समय दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति संगीता चन्द्रा ने ओम त्यागी व चार अन्य
की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता मनीष निगम व मकान मालिक के अधिवक्ता
आशीष कुमार सिंह ने बहस की। मालूम हो कि श्रीमती मायावती ने हापुड़ में स्थित पांच
दूकानों को गिराकर नर्सिंग होम बनाने के लिए दूकानें खाली कराने का दावा दायर
किया। उसका कहना था कि बेटा व बहू दोनों डाक्टर हैं। इसलिए नर्सिग होम चलाना चाहते
हैं। किरायेदारों को बेदखल किया जाय। उसे इन दूकानों की जरूरत है, जिसे ढहाकर नर्सिंग होम बनाया जायेगा। किरायेदारों
ने प्रतिवाद किया कि वादी के बेटे व बहू के बीच तलाक का मुकदमा चल रहा है और नर्सिंग
होम बनाने के लिए कम से कम 300 वर्गमीटर जमीन
चाहिए। इन दूकानें को गिराने के बाद 268 वर्गमीटर जमीन ही मिलेगी। कोर्ट ने कहा इस मामले पर पिलखुआ नगर पालिका
विचार करेगी। किराया नियंतण्रअधिकारी को क्षेत्राधिकार नहीं है। दुकान खाली कराने
की मकान मालिक की वास्तविक जरूरत पर ही विचार किया जायेगा। अधीनस्थ अथारिटी का
बेदखली का आदेश विधि सम्मत है।