Sunday, July 1, 2018

हिटलर कितना हिटलर


आज जर्मनी वाला हिटलर भूले से भी इधर आ जाए तो सच मानिए वह आत्मग्लानि से भर जाएगा। सोचेगा कि मुझे अपने दुश्मनों को निपटाने के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ा? और आजकल इधर वाले तो बिना गैस चेंबर के ही दमघोंटू वातावरण बना सकते हैं

इस सप्ताह अपने चैनलों ने दो चमत्कार दिखाए। एक अंग्रेजी एंकर ने बताया कि देश में अब सिर्फ ‘‘दक्षिणपंथीहैं, या ‘‘दक्षिणपंथ विरोधीहैं। लेफ्ट कहीं नहीं हैं। दक्षिणपंथ का ऐसा खूला गुणगान बहुत दिन बाद सुना। लगा कि एंकर में स्व. पीलू मोदी, स्व. मीनू मसानी और स्वतत्रं पार्टी की आत्मा समा गई है। यह देख और भी तसल्ली हुई कि एक चैनल खुले तौर पर अपने को राइटिस्ट बता रहा है यानी बाकी सब ‘‘एंटी-राइटिस्टहैं। दूसरा चमत्कार आपातकाल की याद दिलाने वाली शाम को नजर आया जिसमें चैनलों ने दो-दो हिटलरों का कंपटीशन दिखाया। एक बोला कि ये हिटलर हैं तो इस वाले ने बोला कि वो हिटलर है। हम तो राष्ट्रीय गर्व से गले तक भर गए। जर्मनी के पास तो सिर्फ एक हिटलर था। हमारे पास दो-दो हैं। ओरिजिनल हिटलर की बात चली तो जानकारी बढ़ानी पड़ी कि पिछली सदी में उन्नीस सौ तीस के आसपास जब हिटलर जर्मनी की सत्ता पर काबिज होने को तैयार था तो उसने पहला हमला लेफ्ट और यहूदियों पर बोला। उसकी पार्टी का नाम नेशनल सोशलिस्ट पार्टी था। जर्मन में उसे नात्सी या नाजी पार्टी कहा जाता था।जिन दिनों में हिटलर का जर्मनी में लट्ठ पुजता था। उन्हीं दिनों बदकिस्मती के मारे कम्यूनिस्टों ने जर्मनी में ही एक सम्मेलन करने की ठानी। हिटलर ने उसके चीफ पर केस करने की तैयारी की। उसने एक कैदी को आजाद करने का वायदा करके समझवाया कि तू जर्मनी की संसद में आग लगा दे तो तुझे हम फ्री कर देंगे। उस पगलेट ने समझा कि ऐसा करके आजाद हो जाएगा। सो, उसने वही किया। संसद भवन में आग लगी तो हिटलर के मीडिया ने इसके लिए सीधे कम्यूनिस्टों को जिम्मेदार ठहराया। बहुतों को धर पकड़ा। उनमें से एक जदानोव भी था, जो कम्यूनिस्टों का नामी लीडर था। अदालत में केस चला। आरोप लगे कि कम्यूनिस्ट जर्मनी के दुश्मन हैं, राष्ट्र के दुश्मन हैं। जदानोव ने अपना मुकदमा खुद लड़ा। लंबी जिरह के बाद अदालत ने उसे बरी किया। बाद में उसने अपने अनुभव से फासिज्म से लड़ने के लिए ‘‘पीपुल्स फ्रंटकी थीसिस दी जिसे दुनिया के कम्यूनिस्टों ने माना। एक दिन ऐसा आया कि हिटलर को अपने बंकर में ही आत्महत्या करनी पड़ी। सोवियत रूस की कम्यूनिस्ट सेना आधे जर्मनी में अमेरिकी फौजों से पहले ही घुस गई। बाद में राइिटस्टों यानी अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस की सेनाएं घुसीं। जर्मनी दो भागों में बंट गया। एक ईस्ट यानी कम्यूनिस्ट जर्मनी दूसरा वेस्ट जर्मनी यानी पूंजीवादी जर्मनी। कोई पैंतालीस साल तक यही चलता रहा लेकिन फिर जर्मनी की दीवार टूटी। वामपंथ हारा और दक्षिणपंथ जीता। हिटलर वित्तीय पूंजीवाद का एक स्पेशल प्रोडक्ट था। पहले उसने अपने समाज को लेफ्ट और यहूदियों से मुक्त किया। फिर दुनिया के बाजारों को जीतने निकला। वह मानता था कि दुनिया में सिर्फ श्रेष्ठ नस्लें ही शासन किया करती हैं, और जर्मन असली आर्य नस्ल के हैं, दुनिया पर राज करने के लिए बने हैं। मैं उनका नायक हूं विश्व विजय करके दिखलाता हूं। ये अलग बात हैं कि यह लालसा लिए ही उसे अपने बंकर में आत्महत्या करनी पड़ी। हमारी नजर में हिटलर पूंजी की एक प्रवृत्ति है। अंधी ताकत की पूजा है। वह कहीं भी हो सकती है। कभी-कभी तो लगता है कि वह हम सब में किसी न किसी मात्रा में समाई हुई है। संस्थानों, दलों में समाई है। हर व्यक्ति में मौजूद है। अपने मुख्यधारा के मीडिया में तो हिटलरी प्रवृत्ति अक्सर दिखलाई पड़ती है। कुछ एंकर तो अपने को हिटलर का भी बाप समझते हैं। सिर्फ अपनी चलाते हैं, और किसी की नहीं सुनते। हमारे दो अंग्रेजी चैनलों के कई एंकर इतने उग्र राष्ट्रवादी नजर आते हैं कि घोषित राष्ट्रवादी राजनीति करने वाले भी कभी-कभी हलके नजर आते हैं। उनके होते न आप देश की आलोचना कर सकते हैं, न किसी ताकतवर नेता पर सवाल उठा सकते हैं, न राष्ट्र की नीति पर आपत्ति जता सकते हैं, न सेना पर कोई सवाल खड़ा कर सकते हैं। हमें तो ऐसे एंकरों तक में छोटे-छोटे हिटलर दिखाई देते हैं। मौका मिलते ही घोषित अंध-राष्ट्रवादियों से भी अधिक अंध-राष्ट्रवादी बन जाते हैं। और सोशल मीडिया की तो बात ही रहने दें। वहां तो न जाने कितने छोटे-छोटे हिटलर हरदम किसी न किसी को निपटाने के चक्कर मे लगे रहते हैं।अगर आज जर्मनी वाला हिटलर भूले से भी इधर आ जाए तो सच मानिए वह आत्मग्लानि से भर जाएगा और सोचेगा कि मुझे अपने दुश्मनों को निपटाने के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ा? सेना बनानी पड़ी? हमले करने पड़े। गैस चेंबर बनाने पड़े। और आजकल इधर वाले तो बिना किसी गैस चेंबर के ही दमघोंटू वातावरण बना सकते हैं।

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