अनुसूचित जाति-जनजाति कानून पर हाल के अपने फैसले को उचित बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एकतरफा शिकायत पर किसी को गिरफ्तार करना अनुचित है और इसका अर्थ है कि हम सभ्य समाज में नहीं रह रहे हैं। शीर्ष अदालत ने यहां तक कहा कि संसद भी नागरिकों से जीवन जीने के अधिकार नहीं छीन सकती।
शीर्ष अदालत ने 20 मार्च के आदेश को
लेकर
केंद्र
सरकार
की
पुनर्विचार
याचिका
पर
बुधवार
को
अंतरिम
आदेश
देने
से
इनकार
कर
दिया।
अदालत
ने
इस
मामले
पर
जुलाई
में
विस्तार
से
सुनवाई
करने
का
निर्णय
लिया
है।
न्यायमूर्ति
आदर्श
कुमार
गोयल
और
न्यायमूर्ति
यूयू
ललित
की
पीठ
ने
कहा, ‘एक
पक्ष
की
शिकायत
पर
यदि
किसी
नागरिक
पर
गिरफ्तारी
की
तलवार
लटकी
रहे, तो
इसका
मतलब
हम
सभ्य
समाज
में
नहीं
जी
रहे
हैं।
उचित
प्रक्रिया
अपनाए
बिना
गिरफ्तारी
पर
संसद
ने
भी
रोक
लगा
रखी
है।’
केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल के अदालत से 20 मार्च के अपने फैसले पर पुनर्विचार के आग्रह पर पीठ ने यह टिप्पणी की। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अदालत वैकल्पिक कानून नहीं बना सकती। पीठ ने कहा कि अनुच्छेद-21 (जीवन जीने व स्वच्छंदता का अधिकार) को कानून के हर प्रावधानों के साथ जोड़कर पढ़ने की जरूरत है।
इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अनुच्छेद-21 का दायरा बढ़ गया है। इसके तहत भोजन एवं रोजगार का अधिकार भी शामिल हो गया है। उन्होंने कहा कि एक कल्याणकारी राज्य में सबके लिए यह अधिकार सुनिश्चित करना संभव नहीं है। सभी को रोजगार देना कठिन है। देश में लाखों बेरोजगार हैं और जाने कितनों की फुटपाथ पर ही जिंदगी गुजर जाती है।
जज पर टिप्पणी करने वालों पर कार्रवाई की मांग
बिजॉन कुमार मिश्रा द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर अटॉर्नी जनरल को सहयोग करने के लिए कहा गया है। याचिका में कहा गया कि जिन लोगों ने 20 मार्च के आदेश और आदेश देने वाले जजों पर टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई व जांच की मांग की गई है।
एससी एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के दुरुपयोग को देखते हुए इस कानून के तहत मिलने वाली शिकायत पर स्वत: एफआईआर और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। साथ ही इसमें अग्रिम जमानत का प्रावधान भी जोड़ दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एफआईआर दर्ज करने से पहले जांच होनी चाहिए।
केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल के अदालत से 20 मार्च के अपने फैसले पर पुनर्विचार के आग्रह पर पीठ ने यह टिप्पणी की। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अदालत वैकल्पिक कानून नहीं बना सकती। पीठ ने कहा कि अनुच्छेद-21 (जीवन जीने व स्वच्छंदता का अधिकार) को कानून के हर प्रावधानों के साथ जोड़कर पढ़ने की जरूरत है।
इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अनुच्छेद-21 का दायरा बढ़ गया है। इसके तहत भोजन एवं रोजगार का अधिकार भी शामिल हो गया है। उन्होंने कहा कि एक कल्याणकारी राज्य में सबके लिए यह अधिकार सुनिश्चित करना संभव नहीं है। सभी को रोजगार देना कठिन है। देश में लाखों बेरोजगार हैं और जाने कितनों की फुटपाथ पर ही जिंदगी गुजर जाती है।
जज पर टिप्पणी करने वालों पर कार्रवाई की मांग
बिजॉन कुमार मिश्रा द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर अटॉर्नी जनरल को सहयोग करने के लिए कहा गया है। याचिका में कहा गया कि जिन लोगों ने 20 मार्च के आदेश और आदेश देने वाले जजों पर टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई व जांच की मांग की गई है।
एससी एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के दुरुपयोग को देखते हुए इस कानून के तहत मिलने वाली शिकायत पर स्वत: एफआईआर और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। साथ ही इसमें अग्रिम जमानत का प्रावधान भी जोड़ दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एफआईआर दर्ज करने से पहले जांच होनी चाहिए।