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सब्जेक्ट के नम्बर भी जोड़ दिया मेरिट में
अभी तक तो हम बिहार में टॉपर बनाने के खेल का फर्जीवाड़ा पढ़ते आये हैं।लेकिन यह जादूगरी प्रधानमन्त्री के संसदीय क्षेत्र में भी खूब होती है। एक नामचीन स्कूल ने बड़ी सफाई से अपने यहाँ के हाईस्कूल के परीक्षाफल में नंबरों का खेल करके एक बच्चे को अखबारों में टॉपर घोषित कर दिया।उसी के ठीक पीछे की एक बच्ची उससे अखबारों में पिछड़ गई। यहाँ साख की गोपनीयता के चलते हम न तो विद्यालय का नाम दे रहे हैं न ही बच्चों का। मामला हाईस्कूल के परिक्षफल का है।सी बी ऐस इ बोर्ड की इस परीक्षाफल के बाद अखबारों में सभी स्कूल विज्ञापन देते हैं।इसने भी दिया।जिसमे एक बच्चे को 98 फीसदी नंबर दर्श कर उसे टॉपर घोसित कर दिया।इसमें गौर करने वाली बात यह है कि टॉपर बच्चे की मार्कशीट में मैथ में 97 नम्बर है।जिसे विज्ञापन में 99 दिखाया गया है।इसी प्रकार सोशल साइंस में 96 को 100 कर दिया गया है। इस खेल से बच्चे का पर्सेंट 98 हो गया है।जबकि वास्तविक मार्कशीट के टोटल जोड़ में यह पर्सेंट 96.4 आता है।इसी विद्यालय की एक छात्रा जिसे वास्तविकता में 97.8फीसदी नंबर मिले ।वह पिछड़ गयी। मज़े की बात यह भी कि सोशल साइंस इस बच्चे का वैकल्पिक विषय है जिसे मुख्य की श्रेणी में रख कर विज्ञापन के लिए मेरिट बना दी है।जब कि बच्चे के मुख्य विषय में एक इन्फोटेक को विज्ञापन बनाने में शामिल ही नहीं किया गया क्योकि इसमें उसे महज 88 फीसदी अंक मिले हैं। यह सबकुछ इतनी सफाई से हुआ है कि पढ़ने वाला इसे सच समझे।इसकी सत्यता जानने के लिए राष्ट्रीय सहारा ने मार्कशीट निकलवाई तो बात सच निकली। तो क्या अपने स्कूल को आगे दशर्ने के लिए किसी को यह अधिकार है कि वह अंकपत्र से छेंड़छाड़ करे और मानक बदल दे।इस पर संयुक्त शिक्षा निदेशक अजय त्रिवेदी कहते हैं कि यह अधिकार किसी को नहीं।उन्होंने कहा कि गैर पंजीकृत कोचिंग ऐसा कुछ करते है तो उसमे अखबार वालो को खुद उसे जांचना होगा।लेकिन यदि कोई विद्यालय ऐसा करता है तो वह समाज गुमराह करता है और जांच के दायरे में आ जाता है अब ऐसे में भला अखबार वाले किस किस विज्ञापन की सत्यता जांचते फिरेंगे।लिहाजा शिक्षा विभाग खुद इसमें पहल करे और ऐसी घटनाएं रोके।
अभी तक तो हम बिहार में टॉपर बनाने के खेल का फर्जीवाड़ा पढ़ते आये हैं।लेकिन यह जादूगरी प्रधानमन्त्री के संसदीय क्षेत्र में भी खूब होती है। एक नामचीन स्कूल ने बड़ी सफाई से अपने यहाँ के हाईस्कूल के परीक्षाफल में नंबरों का खेल करके एक बच्चे को अखबारों में टॉपर घोषित कर दिया।उसी के ठीक पीछे की एक बच्ची उससे अखबारों में पिछड़ गई। यहाँ साख की गोपनीयता के चलते हम न तो विद्यालय का नाम दे रहे हैं न ही बच्चों का। मामला हाईस्कूल के परिक्षफल का है।सी बी ऐस इ बोर्ड की इस परीक्षाफल के बाद अखबारों में सभी स्कूल विज्ञापन देते हैं।इसने भी दिया।जिसमे एक बच्चे को 98 फीसदी नंबर दर्श कर उसे टॉपर घोसित कर दिया।इसमें गौर करने वाली बात यह है कि टॉपर बच्चे की मार्कशीट में मैथ में 97 नम्बर है।जिसे विज्ञापन में 99 दिखाया गया है।इसी प्रकार सोशल साइंस में 96 को 100 कर दिया गया है। इस खेल से बच्चे का पर्सेंट 98 हो गया है।जबकि वास्तविक मार्कशीट के टोटल जोड़ में यह पर्सेंट 96.4 आता है।इसी विद्यालय की एक छात्रा जिसे वास्तविकता में 97.8फीसदी नंबर मिले ।वह पिछड़ गयी। मज़े की बात यह भी कि सोशल साइंस इस बच्चे का वैकल्पिक विषय है जिसे मुख्य की श्रेणी में रख कर विज्ञापन के लिए मेरिट बना दी है।जब कि बच्चे के मुख्य विषय में एक इन्फोटेक को विज्ञापन बनाने में शामिल ही नहीं किया गया क्योकि इसमें उसे महज 88 फीसदी अंक मिले हैं। यह सबकुछ इतनी सफाई से हुआ है कि पढ़ने वाला इसे सच समझे।इसकी सत्यता जानने के लिए राष्ट्रीय सहारा ने मार्कशीट निकलवाई तो बात सच निकली। तो क्या अपने स्कूल को आगे दशर्ने के लिए किसी को यह अधिकार है कि वह अंकपत्र से छेंड़छाड़ करे और मानक बदल दे।इस पर संयुक्त शिक्षा निदेशक अजय त्रिवेदी कहते हैं कि यह अधिकार किसी को नहीं।उन्होंने कहा कि गैर पंजीकृत कोचिंग ऐसा कुछ करते है तो उसमे अखबार वालो को खुद उसे जांचना होगा।लेकिन यदि कोई विद्यालय ऐसा करता है तो वह समाज गुमराह करता है और जांच के दायरे में आ जाता है अब ऐसे में भला अखबार वाले किस किस विज्ञापन की सत्यता जांचते फिरेंगे।लिहाजा शिक्षा विभाग खुद इसमें पहल करे और ऐसी घटनाएं रोके।