आत्महत्या की कोशिश
करना अब हमारे देश में अपराध नहीं है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 29 मई
को मानसिक चिकित्सा अधिनियम 2017 की अधिसूचना जारी कर दी है
जिससे यह गैर-आपराधिक बना गया है। संसद में कानून पारित होने के एक साल बाद यह
अधिसूचना जारी की है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने लोकसभा में
पिछले साल इस बिल को पेश करने के दौरान कहा था, "इस बिल में
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह आत्महत्या की कोशिश को भारतीय दंड संहिता
(आईपीसी) से अलग करता है। इसलिए अब खुदकुशी की कोशिश के मामलों पर आईपीसी के
प्रावधान लागू नहीं होंगे।"
उन्होंने कहा, "चूंकि व्यक्ति अत्यधिक मानसिक तनाव के कारण ऐसा कदम उठाता है। जिसका मतलब है कि यह एक मानसिक बीमारी से शुरू होता है, इसलिए इसे आपराधिक नहीं बनाना चाहिए।"
कानून में भी एक प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति भविष्य में मानसिक बीमार से ग्रसित होता है तो उसके इलाज के बारे में पहले से निर्देश दे सकता है।
यह कानून मानसिक रूप से बीमार बच्चों के इलाज के लिए बिजली के झटके की पद्धति पर भी प्रतिबंध लगाता है। यह कानून कहता है कि वयस्कों के मामले में भी इस तरह के इलाज को एनेस्थीसिया और मांसपेशियों में आराम करने वाली दवाओं के साथ दिया जाना चाहिए।
एक अनुमान के मुताबिक देश की आबादी का 6 से 7 फीसदी हिस्सा किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी से पीड़ित है। आबादी के 1 से 2 फीसदी लोगों में यह बीमारी काफी ज्यादा है।
उन्होंने कहा, "चूंकि व्यक्ति अत्यधिक मानसिक तनाव के कारण ऐसा कदम उठाता है। जिसका मतलब है कि यह एक मानसिक बीमारी से शुरू होता है, इसलिए इसे आपराधिक नहीं बनाना चाहिए।"
कानून में भी एक प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति भविष्य में मानसिक बीमार से ग्रसित होता है तो उसके इलाज के बारे में पहले से निर्देश दे सकता है।
यह कानून मानसिक रूप से बीमार बच्चों के इलाज के लिए बिजली के झटके की पद्धति पर भी प्रतिबंध लगाता है। यह कानून कहता है कि वयस्कों के मामले में भी इस तरह के इलाज को एनेस्थीसिया और मांसपेशियों में आराम करने वाली दवाओं के साथ दिया जाना चाहिए।
एक अनुमान के मुताबिक देश की आबादी का 6 से 7 फीसदी हिस्सा किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी से पीड़ित है। आबादी के 1 से 2 फीसदी लोगों में यह बीमारी काफी ज्यादा है।