भारत महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक देश है। ये बात मंगलवार
को जारी ग्लोबल एक्सपोर्ट के एक सर्वे में बताई गई। इस सर्वे के नतीजों से यह बात
सामने आई है कि यौन हिंसा और महिलाओं को नौकरानी बनाने में भारत सबसे आगे है। वहीं
केंद्र सरकार द्वारा मातृत्व अधिनियम में किए गए संशोधन के बाद महिलाओं को नौकरी
मिलना मुश्किल हो गया है।
18 लाख महिलाओं को नौकरी मिलना मुश्किल
मातृत्व लाभ संशोधन विधेयक, 2016 की वजह से इस साल 18 लाख से ज्यादा महिलाओं को रोजगार के लिए कड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा सकता है।
टीमलीस (TeamLease) सर्विसेस की हालिया रिपोर्ट में इस बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि मातृत्व लाभों की वजह से व्यवसायों और रोजगार पर बुरा असर पड़ रहा है।
इस रिपोर्ट में 10 ऐसे क्षेत्रों पर स्टडी की गई है जिसमें महिलाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा होती है। इन क्षेत्रों में 11 लाख से 18 लाख महिलाओं को नौकरी के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि यह आंकड़ा आने वाले समय में और बढ़ सकता है।
गौरतलब है कि भारत में कुल श्रमिकों में 27% महिलाएं हैं और जिनमें 14% औपचारिक क्षेत्रों में काम कर रही हैं। लेकिन बिल में संशोधन के बाद महिलाओं को नौकरी मिलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा रहा है।
स्टडी में बताया गया कि नए नियम को लेकर छोटे और मझोले स्तर की कंपनियां जिनमें स्टार्ट-अप, एसएमई, मध्यम आकार की बहुराष्ट्रीय कंपनियां और परिवार द्वारा संचालित व्यापार जैसे क्षेत्र में संशोधन की वजह से बुरी तरह उत्साहहीनता हैं। इन क्षेत्रों में महिलाओं को नौकरी देने से मना किया जा रहा है।
बता दें कि महिलाओं के काम पर बने रहने के लिए मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के कई प्रावधानों में बदलाव किए गए हैं। विधेयक में 12 हफ्ते की छुट्टियों की सुविधा को केंद्र सरकार ने बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दिया है।
विधेयक में किए गए संशोधन में बच्चा गोद लेने वाली माताओं का भी खयाल रखा गया है। विधेयक के मुताबिक अगर 3 महीने से कम उम्र के बच्चे को कोई मां गोद लेती है या सरोगेसी से बच्चे को जन्म देती हैं तो उसे भी 12 हफ्तों का अवकाश मिल सकेगा।
यह भी प्रावधान रखा गया है कि मातृत्व अवकाश खत्म होने के बाद भी विशेष परिस्थितियों में कामकाजी माताओं को घर से काम करने की सुविधा दी जाएगी। जिन स्थानों में 50 या इससे ज्यादा महिलाएं काम करती हैं वहां शिशुगृह (बच्चों की देखभाल के लिए बनाया गया स्थान) भी अनिवार्य किए जाएंगे।
मातृत्व लाभ संशोधन विधेयक, 2016 की वजह से इस साल 18 लाख से ज्यादा महिलाओं को रोजगार के लिए कड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा सकता है।
टीमलीस (TeamLease) सर्विसेस की हालिया रिपोर्ट में इस बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि मातृत्व लाभों की वजह से व्यवसायों और रोजगार पर बुरा असर पड़ रहा है।
इस रिपोर्ट में 10 ऐसे क्षेत्रों पर स्टडी की गई है जिसमें महिलाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा होती है। इन क्षेत्रों में 11 लाख से 18 लाख महिलाओं को नौकरी के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि यह आंकड़ा आने वाले समय में और बढ़ सकता है।
गौरतलब है कि भारत में कुल श्रमिकों में 27% महिलाएं हैं और जिनमें 14% औपचारिक क्षेत्रों में काम कर रही हैं। लेकिन बिल में संशोधन के बाद महिलाओं को नौकरी मिलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा रहा है।
स्टडी में बताया गया कि नए नियम को लेकर छोटे और मझोले स्तर की कंपनियां जिनमें स्टार्ट-अप, एसएमई, मध्यम आकार की बहुराष्ट्रीय कंपनियां और परिवार द्वारा संचालित व्यापार जैसे क्षेत्र में संशोधन की वजह से बुरी तरह उत्साहहीनता हैं। इन क्षेत्रों में महिलाओं को नौकरी देने से मना किया जा रहा है।
बता दें कि महिलाओं के काम पर बने रहने के लिए मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के कई प्रावधानों में बदलाव किए गए हैं। विधेयक में 12 हफ्ते की छुट्टियों की सुविधा को केंद्र सरकार ने बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दिया है।
विधेयक में किए गए संशोधन में बच्चा गोद लेने वाली माताओं का भी खयाल रखा गया है। विधेयक के मुताबिक अगर 3 महीने से कम उम्र के बच्चे को कोई मां गोद लेती है या सरोगेसी से बच्चे को जन्म देती हैं तो उसे भी 12 हफ्तों का अवकाश मिल सकेगा।
यह भी प्रावधान रखा गया है कि मातृत्व अवकाश खत्म होने के बाद भी विशेष परिस्थितियों में कामकाजी माताओं को घर से काम करने की सुविधा दी जाएगी। जिन स्थानों में 50 या इससे ज्यादा महिलाएं काम करती हैं वहां शिशुगृह (बच्चों की देखभाल के लिए बनाया गया स्थान) भी अनिवार्य किए जाएंगे।
भारत
महिलाओं के लिए ‘दुनिया
का सबसे खतरनाक देश’
भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश है यह बात थॉमसन रायटर्स
फाउंडेशन के सर्वे में कही गई है। सर्वे में पाया गया कि भारत यौन हिंसा के चलते
महिलाओं के लिए सबसे जोखिम भरा देश है। इसके बाद फगानिस्तान, सीरिया, सोमालिया
और सऊदी अरब हैं। यह सर्वे रिपोर्ट महिला मामलों के 550 विशेषज्ञों
की राय के आधार पर तैयार की गई थी।
वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस सर्वे की प्रकिया पर सवाल उठाते हुए इस गलत करार दिया है। आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा है कि इस सर्वे में कम महिलाओं को शामिल किया गया इसलिए यह सर्वे सही आंकड़े पेश नहीं करता।
उन्होंने आगे कहा 'यह कतई नहीं हो सकता कि महिलाओं के लिए खतरनाक देशों की सूची में भारत टॉप पर हो। क्योंकि हमसे पीछे उन देशों को शामिल किया गया है जहां की महिलाओं को न तो बोलने दिया जाता है और न ही मुख्यधारा से जोड़ा जाता है।'
पाकिस्तान 9वें स्थान पर
लिस्ट में पाकिस्तान को 9वां स्थान दिया गया है, जबकि अमेरिका को 10वां स्थान दिया गया है। बता दें कि थॉमसन रायटर्स ने 2011 में भी ऐसा ही सर्वे किया था जिसमें अफगानिस्तान को पहले तो पाकिस्तान को तीसरे स्थान पर तो वहीं भारत को चौथे स्थान पर रखा गया था।
निर्भया गैंगरेप के बाद भी हालात जस के तस
2012 निर्भया गैंगरेप के बाद कहा जा रहा था कि महिलाओं की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा लेकिन 6 साल बाद भी हालात जस के तस हैं। सरकारी आंकड़ें दिखाते हैं कि 2007 से 2016 के बीच महिलाओं के खिलाफ हिंसा में 83 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। यानि देश में हर चार घंटे में एक महिला से बलात्कार किया जा रहा था।
वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस सर्वे की प्रकिया पर सवाल उठाते हुए इस गलत करार दिया है। आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा है कि इस सर्वे में कम महिलाओं को शामिल किया गया इसलिए यह सर्वे सही आंकड़े पेश नहीं करता।
उन्होंने आगे कहा 'यह कतई नहीं हो सकता कि महिलाओं के लिए खतरनाक देशों की सूची में भारत टॉप पर हो। क्योंकि हमसे पीछे उन देशों को शामिल किया गया है जहां की महिलाओं को न तो बोलने दिया जाता है और न ही मुख्यधारा से जोड़ा जाता है।'
पाकिस्तान 9वें स्थान पर
लिस्ट में पाकिस्तान को 9वां स्थान दिया गया है, जबकि अमेरिका को 10वां स्थान दिया गया है। बता दें कि थॉमसन रायटर्स ने 2011 में भी ऐसा ही सर्वे किया था जिसमें अफगानिस्तान को पहले तो पाकिस्तान को तीसरे स्थान पर तो वहीं भारत को चौथे स्थान पर रखा गया था।
निर्भया गैंगरेप के बाद भी हालात जस के तस
2012 निर्भया गैंगरेप के बाद कहा जा रहा था कि महिलाओं की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा लेकिन 6 साल बाद भी हालात जस के तस हैं। सरकारी आंकड़ें दिखाते हैं कि 2007 से 2016 के बीच महिलाओं के खिलाफ हिंसा में 83 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। यानि देश में हर चार घंटे में एक महिला से बलात्कार किया जा रहा था।