पंजाब हरियाणा
हाईकोर्ट ने कहा है कि सिर्फ सुसाइड नोट में नाम होने के आधार पर ही किसी को
गुनहगार साबित नहीं किया जा सकता। जस्टिस बजंतरी ने कहा, आरोपी के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के पीछे की आपराधिक मंशा भी साबित
करनी जरूरी है।
जस्टिस बजंतरी ने यह
टिप्पणी गुड़गांव की कंपनी जीरॉक्स इंडिया लि. के मैनेजर इकबाल आसिफ खान के
आत्महत्या मामले की सुनवाई के दौरान की। वर्ष 2011 में इकबाल आसिफ खान ने आत्महत्या कर ली थी। उनके शव के पास से एक सुसाइड नोट
मिला था, जिसमें छह लोगों को खुदकुशी के लिए उकसाने का दोषी ठहराया
गया था। आरोपियों में इकबाल के वकील और ऑफिस के कर्मचारियों के नाम थे। पुलिस जांच
में आरोपियों के खिलाफ किसी तरह का आरोप साबित नहीं हुआ।
कोर्ट ने कहा, इस मामले में साफ लगता है कि आत्महत्या करने वाला कमजोर मानसिकता वाला और डरपोक व्यक्ति था, जिसने परिस्थितियों से निपटने और बुरे हालात में परिवार का साथ देने की बजाय आत्महत्या कर ली। आत्महत्या करने के पीछे शख्स का व्यक्तित्व देखा जाना बेहद जरूरी है। अगर किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोपी बनाए जाने का मामला है तो यह देखा जाना बेहद जरूरी है कि आरोपी की उसके पीछे आपराधिक मंशा भी हो, जोकि इस केस में साबित नहीं हुई है।
जज ने मामले में फैसला सुनाते हुए उदाहरण दिया, कम अंक आने पर जान देने वाले छात्र के शिक्षक और प्रेम में नाकामयाब आशिक के सुसाइड के लिए उसकी प्रेमिका को आत्महत्या के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने कहा, इस मामले में साफ लगता है कि आत्महत्या करने वाला कमजोर मानसिकता वाला और डरपोक व्यक्ति था, जिसने परिस्थितियों से निपटने और बुरे हालात में परिवार का साथ देने की बजाय आत्महत्या कर ली। आत्महत्या करने के पीछे शख्स का व्यक्तित्व देखा जाना बेहद जरूरी है। अगर किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोपी बनाए जाने का मामला है तो यह देखा जाना बेहद जरूरी है कि आरोपी की उसके पीछे आपराधिक मंशा भी हो, जोकि इस केस में साबित नहीं हुई है।
जज ने मामले में फैसला सुनाते हुए उदाहरण दिया, कम अंक आने पर जान देने वाले छात्र के शिक्षक और प्रेम में नाकामयाब आशिक के सुसाइड के लिए उसकी प्रेमिका को आत्महत्या के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता।