डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की अनिश्चयपूर्ण प्रकृति के कारण अमेरिका
ने भारत के साथ अपनी पहली टू प्लस टू (दो जोड़ दो वार्ता) एक बार फिर स्थगित कर दी
है। पिछले साल जून में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान इस
वार्ता के प्रारूप पर दोनों देशों के बीच पारस्परिक सहमति बनी थी। यह माना जा रहा
था कि इस वार्ता से दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों को एक नई ऊंचाई मिलेगी। लेकिन
सच तो यह है कि इस वार्ता के स्थगन से अमेरिकी नीति संदेह के घेरे में आ गई है।
हालांकि अमेरिका के स्टेट सेक्रेटरी माइक पोम्पियो और भारतीय विदेश मंत्री सुषमा
स्वराज ने इस वार्ता को फिर से निर्धारित करने के लिए सहमति जताई है, लेकिन वास्तविकता यह है कि वाशिंगटन
और नई दिल्ली के बढ़ते हुए दोस्ताना संबंधों के बीच ईरान का मुद्दा गतिरोधक के रूप
में सामने आ रहा है। अभी भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर युद्ध की जो
स्थिति बनी हुई है, उसकी पृष्ठभूमि में नई दिल्ली और तेहरान
के बीच ऊर्जा संबंध है। इसी कारण से अमेरिका भारत को रियायत देने से इनकार कर रहा
है। दरअसल, पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय अमेरिका और
ईरान के बीच जो परमाणु समझौता हुआ था, उसे ट्रंप ने खारिज कर
दिया है। अमेरिका ने ईरान के खिलाफ सख्त प्रतिबंध लगा दिया है। अमेरिका की नजर में
ईरान संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का लगातार उल्लंघन कर रहा है, और परमाणु समझौते के नियमों की धज्जियां उड़ा रहा है, और कई क्षेत्रों में नियंतण्र आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। इसलिए वह ईरान
को विश्व शांति के लिए खतरा मान रहा है। दरअसल, अमेरिका
चाहता है कि भारत ईरान के साथ अपना व्यापारिक कारोबार पूरी तरह बंद कर दे जिससे कि
ईरान को अपना परमाणु कार्यक्रम स्थगित करना पड़े। पिछले दिनों भारत के दौरे पर आई
अमेरिकी राजदूत निक्की हेली के जरिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संदेश
भिजवाया था कि भारत ईरान के बारे में अपनी नीति बदले। अमेरिका ने भारत, चीन समेत अन्य देशों से चार नवम्बर तक ईरान से कच्चे तेल का आयात बंद करने
की अपील की है। भारत की विदेश नीति का सार तत्व रहा है कि वह किसी भी सैनिक और
राजनीतिक लामबंदी से अलग रहता है। इसीलिए किसी एक देश द्वारा किसी दूसरे पर लगाए
प्रतिबंधों को स्वीकार नहीं करता। भारत सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को
मानता है। अभी एक पखवाड़े पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने प्रेस वार्ता में
विदेश नीति को स्पष्ट किया था। इसके बाद ही निक्की हेली को भारत आना पड़ा। ईरान के
साथ भारत का रणनीतिक संबंध है। चाबहार बंदरगाह परियोजना में भारत प्रमुख हिस्सेदार
है। भारत के लिए यह परियोजना सामरिक और रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसके
पूरा हो जाने पर भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच सीधा
सम्पर्क हो जाएगा। भारत का ईरान पर तेल की निर्भरता है। इन सारी स्थितियों को
देखते हुए इन दोनों देशों के संबंधों से भारत और ईरान दोनों अपना पीछा नहीं छुड़ा
सकते। इसलिए यह भारत की विदेश नीति के लिए बड़ी चुनौती है कि वह अमेरिका को नाराज
किये बिना ईरान के साथ अपने संबंधों को बनाये रखे। अगर अमेरिका चीन को काबू में
रखने के लिएभारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत की बड़ी भूमिका की अपेक्षा रखता है तो
उसे भारतीय हितों की संवेदनशीलता का भी ध्यान रखना होगा।