लोकसभा
चुनाव बीत गए लेकिन इस दौरान न तो किसी उम्मीदवार ने न ही उन्हें मैदान में उतारने
वाली पार्टी ने उनके आपराधिक रिकॉर्ड का ब्योरा अखबारों या टीवी में प्रचारित नहीं
किया। इस बार लोकसभा का चुनाव सात चरणों (75 दिन) में
हुआ था।
ऐसा नहीं है कि सभी उम्मीदवार
साफ छवि के थे और इस वजह से उन्हें आपराधिक रिकॉर्ड के प्रचार की जरूरत नहीं पड़ी।
जबकि वास्तविकता यह है कि
लोकसभा के लिए चुने गए 542 उम्मीदवारों
में से 233 यानी 43 फीसदी के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। इनमें से 29 फीसदी उम्मीदवारों के खिलाफ दुष्कर्म, हत्या, हत्या के
प्रयास, महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे संगीन
मामले लंबित हैं।
चुनाव आयोग के निर्देश के
अनुसार यह प्रचार तीन बार मोटे अक्षरों में स्थानीय अखबारों और टीवी में करना था।
आयोग ने यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट के गत वर्ष सितंबर के फैसले के आलोक में जारी
किया गया था। चुनाव सुधार और चुनावों पर नजर रखने वाली संस्था एडीआर के
संस्थापक जगदीप छोकर ने इस बारे में बताया कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश ही अव्यवहारिक
था। उन्होंने कहा कि इस बारे में आयोग भी कुछ नहीं कर पाएगा क्योंकि किसने प्रचार
किया, किसने नहीं, यह कौन बताएगा।
राजनीतिक दलों ने किया था विरोध
इस आदेश का राजनीतिक दलों ने विरोध किया था। साथ ही आयोग द्वारा निर्देश जारी होने के बाद उन्होंने चुनाव आयोग से गुहार की थी कि आपराधिक रिकॉर्ड का प्रचार करने का खर्च उम्मीदवार के खाते में न डालकर पार्टी के खाते में कर दिया जाए जिसके खर्च की कोई सीमा नहीं है। गौरतलब है कि लोकसभा उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा 75 लाख रुपये है।
इस आदेश का राजनीतिक दलों ने विरोध किया था। साथ ही आयोग द्वारा निर्देश जारी होने के बाद उन्होंने चुनाव आयोग से गुहार की थी कि आपराधिक रिकॉर्ड का प्रचार करने का खर्च उम्मीदवार के खाते में न डालकर पार्टी के खाते में कर दिया जाए जिसके खर्च की कोई सीमा नहीं है। गौरतलब है कि लोकसभा उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा 75 लाख रुपये है।
लेकिन आयोग ने इसे नकार दिया और
कहा कि उम्मीदवार अपने खर्च से अपने आपराधिक रिकॉर्ड का प्रचार करेगा और पार्टी
अपने फंड से। लेकिन इस स्पष्टीकरण के बावजूद उमीदवार या राजनीतिक दल द्वारा आपराधिक
रिकॉर्ड का कोई प्रचार दिखाई नहीं दिया। इन उम्मीदवारों ने फार्म 26 में अपने आपराधिक रिकॉर्ड का ब्योरा चुनाव अधिकारी को देकर
ही इतिश्री समझ ली।
पार्टी पर मान्यता खोने का खतरा
आयोग के सूत्रों के अनुसार दलों और उम्मीदवारों द्वारा आपराधिक रिकॉर्ड का ब्योरा प्रकाशित न करने पर पार्टी पर अपनी मान्यता खोने और उम्मीदवार के निलंबित होने का खतरा हो सकता है। वहीं यह मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में भी लाया जा सकता है और अवमानना की अर्जी दाखिल की जा सकती हैं। क्योंकि यह आदेश सुप्रीम कोर्ट का था जिसका पालन नहीं किया गया है।
आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसद 2019 में
जीते उम्मीदवार : 539
आपराधिक रिकॉर्ड वाले : 233 (43 फीसदी)
भाजपा : 116
कांग्रेस : 29
जेडीयू : 13
डीएमके : 10
टीएमसी : 9
2014 में आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसद : 185 (34 फीसदी)
2009 में आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसद : 162 (30 फीसदी)
आयोग के सूत्रों के अनुसार दलों और उम्मीदवारों द्वारा आपराधिक रिकॉर्ड का ब्योरा प्रकाशित न करने पर पार्टी पर अपनी मान्यता खोने और उम्मीदवार के निलंबित होने का खतरा हो सकता है। वहीं यह मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में भी लाया जा सकता है और अवमानना की अर्जी दाखिल की जा सकती हैं। क्योंकि यह आदेश सुप्रीम कोर्ट का था जिसका पालन नहीं किया गया है।
आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसद 2019 में
जीते उम्मीदवार : 539
आपराधिक रिकॉर्ड वाले : 233 (43 फीसदी)
भाजपा : 116
कांग्रेस : 29
जेडीयू : 13
डीएमके : 10
टीएमसी : 9
2014 में आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसद : 185 (34 फीसदी)
2009 में आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसद : 162 (30 फीसदी)