Thursday, June 7, 2018

संघ के मंच से प्रणब मुखर्जी ने पढ़ाया राष्ट्रवाद का पाठ


संघ के कार्यक्रम में पहुंचे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत की आत्मा बहुलतावाद और सहिष्णुतामें बसती है.
नागपुर: देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संघ के कार्यक्रम में वो तमाम बातें कहीं जो उनके मुताबिक भारत को एक देश बनाता है. अपने भाषण की शुरुआत में उन्होंने कहा कि वो सबसे पहले ‘राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशप्रेमके बारे में बात करना चाहेंगे. उन्होंने आगे कहा कि इन तीनों की बात एक साथ ही की जा सकती है. मुखर्जी ने आगे कहा कि भारत की आत्मा बहुलतावाद एवं सहिष्णुतामें बसती है. उन्होंने आरएसएस कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारत में हम सहिष्णुता से अपनी ताकत हासिल करते हैं और हम अपनी विविधता का उत्सव मनाते हैं.
हमारा राष्ट्रवाद क्षेत्र, भाषा या धर्म के साथ बंधा हुआ नहीं है
उन्होंने प्राचीन भारत से लेकर देश के स्वतंत्रता आंदोलन तक के इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद वसुधैव कुटुम्बकम्’ और सर्वे भवन्तु सुखिन:..जैसे विचारों पर आधारित है. उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद में विभिन्न विचारों का मिलाप हुआ है. उन्होंने कहा कि घृणा और असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीयता कमजोर होती है. मुखर्जी ने राष्ट्र की अवधारणा को लेकर सुरेन्द्र नाथ बनर्जीबालगंगाधर तिलक और जवाहर लाल नेहरु के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र, भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है.
1800 साल तक भारत दुनिया में शिक्षा का केंद्र रहा
प्रणब मुखर्जी ने कहा, ''1800 साल तक भारत दुनिया में शिक्षा का केंद्र रहा. भारत पहले से खुला हुआ देश है, भारत का राष्ट्रवाद वसुधैव कुटुंबकम से प्रभावित है. विविधिता में एकता ने ही भारत को खास बनाती है.  भारत से ही दुनिया के देशों में बौध धर्म की पहुंच हुई. अगर हम भेदभाव और नफरत करेंगे तो पहचान को खतरा है.'' पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, ''प्राचीन काल में बहुत से विदेशी यात्रियों ने भारत की तारीफ की है.''
संविधान से राष्ट्रवाद की भावना बहती है
मुखर्जी ने कहा, ''अलग रंग भाषा, धर्म भारत की पहचान है. राष्ट्रवाद का किसी धर्म, भाषा और जाति से नहीं बंधा है. पहले मुगलों ने देश कब्जा किया फिर अंग्रेजों ने और उसके बाद दुनिया भर के शाषकों के राज करने के बाद भी हमारी संस्कृति सुरक्षित है.'' नेहरू के हवाले से पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई को मिलकर देश बनाते हैं.  उन्होंने कहा, ''संविधान से राष्ट्रवाद की भावना बहती है, सिर्फ एक धर्म एक भाषा भारत की पहचान नहीं है. विविधिता और सहिष्णुता में ही भारत बसता है, 50 सालों में मैंने सार्वजनिक जीवन में जो सीखा है वही बता रहा हूं.''
लोगों की खुशहाली में राजा की खुशहाली है
मुखर्जी ने कहा कि हमारे लिए लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण मार्गदशर्क है. उन्होंने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उल्लेख करते हुए कहा कि कौटिल्य ने ही लोगों की प्रसन्नता एवं खुशहाली को राजा की खुशहाली माना था. पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को हिंसा से मुक्त करना होगा. साथ ही उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में हमें शांति, सौहार्द्र और प्रसन्नता की ओर बढ़ना होगा. मुखर्जी ने कहा कि हमारे राष्ट्र को धर्म, हठधर्मिता या असहिष्णुता के माध्यम से परिभाषित करने का कोई भी प्रयास केवल हमारे अस्तित्व को ही कमजोर करेगा.
धर्म, 122 भाषाएं, 1600 बोलियों के बावजूद 130 करोड़ भारतीयों की पहचान एक है
उन्होंने कहा, ''विचारों में समानता के लिए डायलॉग जरूर है.  भारत में सात धर्म, 122 भाषाएं और 1600 बोलियां हैं, इसके बावजूद 130 करोड़ भारतीयों की पहचान एक है. आज गुस्सा बढ़ रहा है, हर दिन हिंसा की खबरें आ रही हैं. हिंसा, गुस्सा छोड़कर हम शांति के रास्ते पर चलना चाहिए. बातचीत से हर समस्या का समाधान संभव है. आर्थिक प्रगति के बाद भी खुशहाली में भारत पीछे है.'' पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ''जनता की खुशी में ही राजा की खुशी होनी चाहिए, हर तरह की हिंसा से हमारे समाज को बचने की जरूरत है चाहे वह मौखिक हो या शारीरिक.''

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