सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में आम आदमी को भी कोर्ट
में अवमानना याचिका दायर करने की शक्ति दे दी है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यदि
फैसले में सामान्य हैं तो कोई भी ऐसा व्यक्ति जो उनसे प्रभावित हो रहा है, उनका
पालन न होने पर अवमानना याचिका दायर कर सकता है। अब तक सिर्फ पक्षकारों को ही
अवमानना याचिका दायर करने का अधिकार था।
ऐसे समझें: यदि अदालत ने नागरिक सुविधाओं, प्रदूषण
रोकथाम, सुरक्षा और शिक्षा समेत जनता से जुड़े मुद्दों पर
कोई निर्देश दिया है और उसका पालन नहीं हो रहा है तो आम आदमी अदालतों के फैसलों का
पालन करवाने के लिए अवमानना याचिका दायर कर सकेगा।
रिजर्व बैंक से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एल नागेश्वर
राव ने यह व्यवस्था दी। रिजर्व बैंक का कहना था कि अवमानना याचिका दायर करने वाला
शख्स फैसले में पक्षकार नहीं था इसलिए उसकी याचिका पर विचार नहीं होना चाहिए। इसे
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। अदालत ने बैंक को डिस्क्लोजर पॉलिसी वापस लेने का
निर्देश देते हुए कहा कि जब भी फैसले में ऐसे निर्देश हों जो सामान्य हों और किसी
पक्ष विशेष तक सीमित न हों, ऐसी स्थिति में कोई भी व्यक्ति जो उन
निर्देशों से प्रभावित हो रहा हो, इन निर्देशों का उल्लंघन
होने पर कोर्ट के अवमानना क्षेत्रधिकार का इस्तेमाल कर सकता है। उसे इस बिना
पर नहीं रोका जा सकता कि वह मामले पक्षकार नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में आरबीआई बनाम जयंती लाल मिस्त्री
मामले में फैसला दिया था क्या विनियामक बैंक अन्य बैंकों की सूचनाएं यह कहकर रोक
सकता है कि ये सूचनाएं उसके पास न्यायिक विश्वास के आधार पर रखी गई हैं।
कोर्ट ने कहा इस फैसले में सामान्य प्रकृति के आदेश थे जो किसी एक पक्ष विशेष या बैंक के लिए नहीं थे। इसलिए इस मामले में निर्देशों का उल्लंघन अवमानना याचिका दायर करने का कारण बनेगा।
कोर्ट ने कहा इस फैसले में सामान्य प्रकृति के आदेश थे जो किसी एक पक्ष विशेष या बैंक के लिए नहीं थे। इसलिए इस मामले में निर्देशों का उल्लंघन अवमानना याचिका दायर करने का कारण बनेगा।
मुकदमों की संख्या बढ़ने की आशंका :
जानकारों के अनुसार अदालत की इस व्यवस्था से मुकदमों को संख्या बढ़ सकती है क्योंकि जनसामान्य से जुड़े फैसलों का पालन न होने पर आम आदमी अदालत पहुंचेगा। हालांकि इससे प्राधिकारों में जागरूकता बढ़ेगी। वह नहीं चाहेंगे की ऐसी स्थिति आए कि उन्हें अदालत में अवमानना का सामना करना पड़े।
जानकारों के अनुसार अदालत की इस व्यवस्था से मुकदमों को संख्या बढ़ सकती है क्योंकि जनसामान्य से जुड़े फैसलों का पालन न होने पर आम आदमी अदालत पहुंचेगा। हालांकि इससे प्राधिकारों में जागरूकता बढ़ेगी। वह नहीं चाहेंगे की ऐसी स्थिति आए कि उन्हें अदालत में अवमानना का सामना करना पड़े।